कितने रूप तुम्हारे देखे
गीत
अन्धकार के आह्वाहन पर दौड़ लगाते तारे देखे
….. कितने रूप तुम्हारे देखे
क्षिप्त चित्त की तमस भूमि पर
एकाग्र चित्त का सम्मेलन
उत्कर्ष हृदय के वेगों पर
अधिकार जताता उन्मन मन
हर्षित मन के घर आंगन में,कुंठा के रंग सारे देखे
….कितने रूप तुम्हारे देखे
व्योम धरा के अनुबंधों के
सारे नियम विलक्षण पाए
दृष्टि हुई है इतनी धुंधली
कोई भेद समझ न आए
अंधियारों का भेद छुपाते , दुपहर के उजियारे देखे
……कितने रूप तुम्हारे देखे
महाग्रंथ के अध्येता भी
देखे हैं मैंने अतिवादी
लघु जीवन का विश्लेषण कर
कितने संत बने उन्मादी
पारिजात वृक्षों के नीचे , मंत्र विजेता हारे देखे
……कितने रूप तुम्हारे देखे
शिवकुमार बिलगरामी