कितने भारत
उसने मुझे बिहारी ऐसे कहा,
जैसे मैं कोई भिखारी था,
घृणा भरी नजरों से मुझे ऐसे देखा,
जैसे मैं पाकिस्तानी पड़ौसी था।।
खैर मैं तो मुसलमान था,
पर उसने मुझे हिंदू ही समझा,
और आदेश मुझे ऐसे दिया,
जैसे मैं किसी गुलामी का प्रतीक था।।
मैंने उसकी कार साफ की,
और मजूरी लेने हाथ आगे बढ़ा दिया,
वासे चावल उसने मेरे हाथों ऐसे थमा दिए,
जैसे मैं सड़ा गला दाल भात खाने वाला कीड़ा था।।
भारत बेरोजगार बिहार भूखा था,
इसलिए मैं उसे भी चाब से खा गया,
हरेक दाने की कीमत समझता था,
क्योंकि मैं फसल बर्बाद हुआ किसान था।।
मगध देश की सरहदें पार कर,
पता नहीं मैं किस देश में घुसपैठ कर गया,
जहाँ हर कोई भारतीय था,
मगर मुझे सभी ने बिहारी बना दिया..।।
prAstya….(प्रशांत सोलंकी)