कितने बदल गए हो तुम?
परिवर्तन
कितने बदल गए हो तुम?
पेड़ की एक डाली पर बैठा मैं,
और दूसरे पर तुम।
मेरे चोंच से चूते चहचह,
और तुम्हारे कण्ठ से मधुर कलरव।
परिचयक,परस्पर प्रेम का,
अपनेपन का अनंत अनुभव।
कालचक्र की त्वरित होती गति,
विधि की नियति
या तूफान की यह परिणति।
तूफान से टूटती हुई डाली
और मुझसे अलग होते तुम।
अपना अलग आश्रय लेता मैं
और अपने आप में खोते तुम।
एक मोड़ पर थके-माँदे खड़े तुम
और अरसे बाद हमारा मिलन,
अकस्मात ही,अनायास ही,
मैं कदाचित खड़ा रहा वहीं,
पर कितनी दूरी तक चल गए तो तुम।
सच,परिवर्तन परिभाषित तुमसे ही,
मैं तो उन्हीं भावों से भरा रहा,
पर कितने बदल गए तो तुम।
-नवल किशोर सिंह