कितने पंछी मर गये
कनकौओं की डोरियां,तनीं रहीं बन बाण !
पंछी दिनभर सैकड़ों, हुए आज निष्प्राण !!
कितने पंछी मर गए, कितने हुए अपंग !
कनकौओं की डोर से, हुई जहां भी जंग !!
रमेश शर्मा.
कनकौओं की डोरियां,तनीं रहीं बन बाण !
पंछी दिनभर सैकड़ों, हुए आज निष्प्राण !!
कितने पंछी मर गए, कितने हुए अपंग !
कनकौओं की डोर से, हुई जहां भी जंग !!
रमेश शर्मा.