कितने दिन का जीवन
बोलो मीठा मिलके चलो,
सबसे कर लो स्नेह।
कितने दिन का जीवन है,
कितने दिन का देह।
बुझे प्यास वाणी से तेरी,
ऐसी भरी हो नेह।
छायादार बनो कुटिया तुम,
नहीं बनो ताड़ का गेह।
उमड़ घुमड़ मानवता बरसे,
बनो तुम अम्बर का मेह।
नहीं सूखा बाढ़ कहीं हो,
पीड़ित दर्द में न हो केह।
हो विश्वास सर्व शिखर पर,
नहीं मिली हो खेह।
अपने ही चहुँ ओर दिखे बस,
फिजा में न हो रेह।।
बोलो मीठा मिलके चलो,
सबसे कर लो स्नेह।
कितने दिन का जीवन है,
कितने दिन का देह।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
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