कितने गड्ढे…
कितने गड्ढे…(कुण्डलिया छंद)
■■■■■■■■■■■■■■
1-
कितने गड्ढे आजकल, सड़कों पर हर ओर।
चलना मुश्किल हो गया, सुबह रात या भोर।
सुबह रात या भोर, चोट लगने का डर है।
घर से मीलों दूर, सुनो अपना दफ्तर है।
महँगा हुआ इलाज़, और गड्ढे हैं इतने।
मर जाते हर साल, मनुज सड़कों पर कितने।।
2-
कच्ची सड़कों का नहीं, पूछो भाई हाल।
मछली, घोंघे रेंगते, ज्यों हो पोखर-ताल।
ज्यों हो पोखर-ताल, हाल कैसे बतलाऊँ।
सर पर चढ़ता कीच, कहीं भी आऊँ-जाऊँ।
सुने नहीं सरकार, बात यह बिल्कुल सच्ची।
संकट में हैं गाँव, गाँव की सड़कें कच्ची।।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- २०/०८/२०२०