कितने अच्छे भाव है ना, करूणा, दया, समर्पण और साथ देना। पर जब
कितने अच्छे भाव है ना, करूणा, दया, समर्पण और साथ देना। पर जब आपके इन भावों के अतिरेक का, फायदा उठाया जाने लगे, तब भी क्या योग्य है सामने वाला? यदि ऐसा बार-बार हो रहा हो, तब विचारणीय है। किसका, कितना और कब तक, साथ देना है। कही साथ देते देते, आपका अस्तित्व ही खतरें में न आ जाए?