कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
गुनाहों की वतन में जंजीर सी बन गई है ।
इस निजाम को तो शर्म आती नहीं ,
हमें अब सुनने की आदत सी पड़ गई है ।
कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
गुनाहों की वतन में जंजीर सी बन गई है ।
इस निजाम को तो शर्म आती नहीं ,
हमें अब सुनने की आदत सी पड़ गई है ।