कितनी बदसूरत हो
है कजरे की धार, गले मोतियो का हार।
कितना भी किया श्रृंगार ।
पर सब हो गया बेकार,
कि तुम कितनी बदसूरत हो।
कि तुम कितनी बदसूरत हो।
#व्यंग्यधार
#विन्ध्यप्रकाशमिश्र विप्र
है कजरे की धार, गले मोतियो का हार।
कितना भी किया श्रृंगार ।
पर सब हो गया बेकार,
कि तुम कितनी बदसूरत हो।
कि तुम कितनी बदसूरत हो।
#व्यंग्यधार
#विन्ध्यप्रकाशमिश्र विप्र