कितनी उल्फ़त है,
कितनी उल्फ़त है तुझसे, जताया ही नहीं जाता ।
रात दिन का साथ तेरा , छुपाया ही नहीं जाता।
इश्क़ की इबारतें जब इमारतें होने लगीं
फिर कोई भी बात दिल की
दिल में छुपाया ही नहीं जाता।
कितनी उल्फ़त है तुझसे, जताया ही नहीं जाता ।
रात दिन का साथ तेरा , छुपाया ही नहीं जाता।
एक वो भी दिन हुआ करता था
दीदार-ए-चाँद को छत पर
रातभर बैठे रहे हम।
अब किसी से आरजू क्या आस
लगाया ही नहीं जाता।
कितनी उल्फ़त है तुझसे, जताया ही नहीं जाता ।
रात दिन का साथ तेरा , छुपाया ही नहीं जाता।
जब कभी हम दूर हों
दिल से सदा हम साथ हों
आहटें तेरी सदा
इस दिल को तड़पाती रहें
ख्वाहिशें कितनी हजारों
बताया ही नहीं जाता ।
कितनी उल्फ़त है तुझसे, जताया ही नहीं जाता ।
रात दिन का साथ तेरा , छुपाया ही नहीं जाता।