कितनी अजब गजब हैं ज़माने की हसरतें
अब रेत से भी आब बनाने की हसरतें,
कितनी अजब-ग़ज़ब हैं ज़माने की हसरतें.
दिल में पनपने लगती हैं ये ख़ुद ब ख़ुद कभी,
सुर्ख़ाब जैसे पंख लगाने की हसरतें .
जाने कहाँ पे जा के रुकेगा ये सिलसिला,
सबको हैं बेहिसाब कमाने की हसरतें.
काँटों की फ़सलें बोईं थीं जिसने तमाम उम्र,
पाले है क्यों वो फूल ही पाने की हसरतें.
मुद्दत हुई है तुमसे हमें रू-ब-रू हुए,
उठती हैं दिल में बज़्म सजाने की हसरतें.
अल्पना सुहासिनी