कितना प्यारा रूप लुभावन….
कितना प्यारा रूप लुभावन
चंद्रवलय- सा मुख मनभावन !
स्मित-चाँदनी फैली लबों पर
शुभ्र,धवल क्या इससे पावन !
नयन – चकोर लगे दर तेरे
बिछी चाँदनी मन के आँगन !
भींज उठता मन सिहर-सिहर
झरे नयन से नेह भर सावन !
एक झलक जो पा लूँ तेरी
भरे खुशी से मेरा दामन !
– © सीमा अग्रवाल
“काव्य पथ” से