कितना नकली है आदमी
काम नहीं कुछ करना,फिर भी नाम चाहता आदमी,
प्रतिष्ठा बिन मेहनत के मिले,ये आज चाहता आदमी।
इस चाहत के कारण खुद,नुकसान उठाता आदमी,
पांव के नीचे भले जमीं न, आसमां चाहता आदमी।
दूजे के सिर होकर सवार,नैया पार चाहता आदमी,
झूठ बात को दूजा माने,बस यही चाहता आदमी।
जो न किया हो वो तुम मानो, दबाव बनाता आदमी,
सोच विचार, मनन जरुरी है,देखे अपनी न आदमी।
चिंतन,स्वाध्याय से ही,सुधार कर सकता है आदमी,
सत्संग,विवेक जगाकर ही,बदल सकता है आदमी।
रामनारायण कौरव