कितना धार्मिक
धर्म की चिंता में सब परेशान हैं। किसी को समस्या है कि होली को मुबारक क्यों कहा जा रहा है, शुभ क्यों नहीं। किसी की चिंता है कि रमज़ान के महीने में होली पर DJ क्यों बज रहा है? कोई परेशान है कि इफ़्तारी के साथ होली को कैसे जोड़ दिया? कोई परेशान है कि सुबह-सबेरे मुअज़्ज़िन इतनी ज़ोर से लाउडस्पीकर पर क्यों बोलता है। कुछ तो इस पर परेशान कि होली के दिन लोगों के घर मीट क्यों बन रहा और कुछ इस पर कि रमज़ान के बीच मुस्लिम लड़के रंग वाली फ़ोटो कैसे लगा रहे!
हिंदू परेशान कि लोग कम हिन्दू हो रहे हैं, मुसलमान परेशान कि लोग कम मुसलमान हो रहे हैं।
मैं सोचता हूँ कि दूसरों की जगह ख़ुद को रखकर देख लें तो सब कितना सुंदर कितना सहनीय हो जाये! थोड़ी देर मुसलमान हिन्दू बनकर सोच ले, हिंदू मुसलमान होकर सोच ले तो अजान भी समझ आ जाये, होली के गीत भी।
कुल मिलाकर हम ऐसे समाज का निर्माण कर रहे है जहां धर्म की परिभाषा बदल रहा है उसका अर्थ प्रेम नहीं बल्कि बैर का रूप ले रहा है ।
ख़ैर