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4 Jun 2021 · 1 min read

कितना तुझे पुकारा चाँद….

कितना तुझे पुकारा चाँद…

तन्हा रात नयन उन्मीलित
कितना तुझे पुकारा चाँद
गढ़ के अनगिन छवियाँ मन में
तेरा रूप निहारा चाँद

दूर क्यों इतनी रहते मुझसे
कह न सकूँ निज मन की तुमसे
भाव हमारे मन के भीतर
रहते चुप-चुप हर पल गुम से

नेह – सने अधरों से हमने
तेरा नाम उचारा चाँद

करतब रिदय में तेरे गुने
कुछ शब्द गढ़े औ गीत बुने
चुन-चुन पोए मनके मन के
तुझ बिन इन्हें पर कौन सुने

बिन तेरे इक दिन ये तन्हा
कैसे हमने गुजारा चाँद

झलक न तेरी पड़े दिखायी
जुल्मी रात अमा की आयी
बढ़ा आ रहा गहन अँधेरा
अरमानों पर बदली छायी

मानस में कल्पित बिंब लिए
अंक भर तुझे दुलारा चाँद

बिन कहे न यूँ छुप जाया कर
कुछ तो इंगित कर जाया कर
रो- रोकर हाल बुरा दिल का
तरस कुछ मुझ पर खाया कर

सच कहती हूँ जग में मेरा
तुझ बिन नहीं गुज़ारा चाँद

कितना तुझे पुकारा चाँद…

-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 448 Views
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