कितना अच्छा होता!!
वो छोटा दोस्त…अब बड़ा हो गया..
बातों को अब कुछ अलग समझने लग गया,
कभी उसकी बचकानी बातों से हंसी आती है,
कभी उसकी नादानी से आंखें आंसू बहाती है ,
ना लड़ाई ना झगड़ा,ना ही अपशब्द की बौछार,
बातचीत में आ गया अलगाव जोरदार,
फिर भी बरसता मन में स्नेह दुलार अपार,
काश! वो कभी बड़ा ही नहीं होता,
मेरा वो वात्सल्य का गागर ही नहीं उमड़ता,
या फिर वो गलतफहमी की नावें नहीं तैराता,
ये सब नहीं होता तो कितना अच्छा होता!!!
_सीमागुप्ता