किडनैपिंग
प्रकाश ने जब नजर उठाकर नेहा की ओर देखा , ‘ नेहा ने कुछ सकुचा , शरमा कर जमीन पर निगाहें टिका ली ‘। प्रकाश के साथ उसका रिश्ता एक नवीन आकार लेता जा रहा था । प्रकाश के लिए नेह भरा सम्बोधन , ‘ जीजू , क्या चाय बना लाऊँ , प्रकाश की स्वीकारोक्ति हाँ नेहा , थोड़ी सी कड़क । इस स्वीकारोक्ति में प्रेम की बू थी । नेहा भी हाँ प्रत्युत्तर देती । एक मोहिनी थी नेहा में , जो नेहा और प्रकाश को कस्तूरी गंध के सदृश एक दूसरे की तरफ खींच करीब ला रही थी । प्रकाश का नेहा को ” नेहू ” कहकर पुकारना मिश्री घोलने लगा था । नेहू ,
‘ क्या बनाया खाने में ‘ प्रकाश आवाज लगा कर पूछता ।
बीना जो नेहा की बड़ी बहिन थी , छुटकी को जन्म देने के बाद बीमार रहने लगी इसलिये प्रकाश के ज्यादातर काम नेहा को ही निबटाने होते थे । बीना जीजा साली के इस प्रेमपूर्ण सम्बन्ध से बिल्कुल अनजान थी । इस अज्ञानता के बीच प्रकाश और नेहा का प्रेम बरगद वृक्ष की तरह पनप रहा था ।
जब नेहा स्कूल जाती तो प्रकाश उसको बाइक से छोड़ कहता , ‘ नेहू अपना ख्याल रखना , छुट्टी होने पर मुझे फोन कर देना । मौन स्वीकारोक्ति दे नेहा छुट्टी होने पर स्कूल से बाहर निकल प्रकाश को फोन कर देती । प्रकाश भी जबाब में ” वेट आनली फार फाइव मिनट्स ” कह अपना आफीसियल काम छोड़ चला आता । नेहा बाइक पर बैठ जाती , बैठने के तरीके में भी एक आत्मविश्वास से भरे प्रेम की झलक मिलती । प्रकाश की कमर में हाथ डालकर बैठना उन दोनों के रिश्ते में प्रगाढ़ता ला रहा था । यही वजह थी कि प्रकाश को अपने अन्तस में प्यार का उद्दाम झरना बहता प्रतीत होता जिसकी परिणति जीजा साली के बीच अनचाहे प्रेम के रूप में हो रही थी ।
शाम के झुरमुट में जब लाइट नहीं थी तो बीना छुटकी पर पंखा कर रही थी। प्रकाश और नेहा भी वही बैठे थे । पर गर्मी की असहनशीलता के कारण प्रकाश के पीछे पीछे नेहा भी छत पर चली आई । छत पर खड़े दोनों बतिया रहे थे । एकाएक प्रकाश ने नेहा को बाहु पाश में बांध कहा ” नेहू , “आई लव यू मोर देन बीना ” नेहा इतना सुनते ही वृक्ष की सुकुमार लता की तरह प्रकाश से लिपट गई । फिर बीना के आवाज देने पर सकपकाती नीचे चली आई । प्रकाश के यह शब्द नेहा को प्रकाश के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित करने लगे । समर्पण भाव इतना अतिरेक था कि वे एक दूसरे के पास आने का अवसर ढ़ूँढ़ ही लिया करते थे । इसी भाव के कारण नेहा के गर्भ में प्रकाश का बीज फल फूल रहा था । नेहा के माँ बाप को पता लगने पर माँ ने नेहा को खूब खरी खोटी सुनाई और आनन फानन में उसका विवाह रवि के साथ कर दिया । ब्याह कर नेहा रवि के घर तो आ गई थी लेकिन मन और आत्मा प्रकाश के पास ही छोड़ आई । समय बीतता गया लेकिन रवि और नेहा नाम मात्र के पति पत्नी थे । दोनों के बीच कोई शारीरिक सम्बन्ध न था । एक रोज रवि को छोड़ नेहा प्रकाश के पास लौट आई ।
अब बेचारा रवि अकेला रह गया । दारू की आदत ने उसके विवेक को हर लिया था । जोरू का स्थान दारू ने ले लिया था । जिन्दगी में जो रिक्तता थी उसको रवि ने शराब , दारू में तलाशा । यही उसकी सहचरी और प्रिया थी । दिन रात इसी के साथ मस्त रहता था , दुनिया की खबर से बेखबर बड़ा ही सकून देती थी दारू ।दे भी क्यों न । क्योंकि वही तो उसकी सहचरी थी ।
विवाह से पूर्व रवि के विवाह को लेकर और अपनी जीवन संगिनी को लेकर जो अरमान थे , वे सब धूमिल हो गए थे उसकी जो भावनाएं थी उस पर नेहा ने डाका डाला था उसकी इच्छाओं , प्रेम पूर्ण भावनाओं की किडनैपिंग हो चुकी थी ।