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22 Apr 2024 · 1 min read

किंकर्तव्यविमूढ़

एक दिन मैंने ज़िंदगी से पूछा तुम इतनी निष्ठुर
क्यों हो ?
ज़िंदगी बोली यह मेरा कसूर नहीं है मैं तो हालातों के हाथों मजबूर हूं,

मैंने हालातो से कहा तुम क्यों जिंदगी को मजबूर करती हो ?
हालातों ने जवाब दिया क्या करूं यह सब वक्त का किया धरा है,

मैंने जब वक्त से पूछा क्यों इस कदर हालातों को परेशान करते हो ?
वक्त ने कहा मैं यह सब कुछ मुझसे नियति करवाती है मैं उसके हाथों मजबूर हूं,

जब मैंने नियति से पूछा तुम क्यों वक्त को मजबूर बनाती हो ?
नियति बोली मैं क्या करूं प्रकृति मुझसे यह सब कुछ करवाती है,

मैंने प्रकृति से प्रश्न किया तुम क्यों नियति को यह सब करने के लिए बाध्य करती हो ?
प्रकृति ने उत्तर दिया इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,

यह सब मानव का किया धरा है,
जिसने मेरा दोहन इस कदर किया है,

कि मैं सुखदायी से दुःखदाई बन कर रह गई हूं,

मैं यह सुन किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह गया,
क्योंकि मेरे प्रश्न का उत्तर मुझे अपने में ही मिल गया।

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