काहू संग न प्रीत भली
तुम संग जितना भागी
तुमने उतना ही दूर किया,
दिल मेरा मोम का था
पत्थर बना चकनाचूर किया…
जितना मोह रहा तुमसे
उतना तुम बने निर्मोही,
प्रीत की राह काँटों भरी
घायल मेरी रूह खड़ी
किस राह रेंगू इसे
जो हर मोह छोड़ चली,
अनुरागी मन विरागी भया
काहू से न प्रीत भली।