काश ……
समय बहुत बलवान होता है
हर ज़ख्म भर देता है
हर दर्द भुला देता है
बस केवल कसक रह जाती है
रह जाता है केवल काश…
और शेष बचती है एक जर्जर सी आस
उसी आस के साथ व्यक्ति अपना जीवन गुजार देता है
सचमुच इंसान बहुत सहनशील, बहुत ताकतवर होता है
अंदर ही अंदर टूटता…
कुढ़ता…
घुटता हुआ प्राणी
अपने दर्द को सीने में दबोचता हुआ प्राणी
फट जाता है एक दिन ….
हवा के अतिरेक से
गुब्बारे की तरह …….!
– हरवंश श्रीवास्तव