काश हमारे पास भी होती ये दौलत।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
काश हमारे पास भी होती ये दौलत,
तो हम भी जहां में अमीर कहलाते।।
लेते सब हमको अदब ओ लिहाज़ में,
यूं हम भी शहर के नज़ीर बन जाते।।
बदकिस्मत थे हमारे गुनाह खुल गए,
वर्ना हम तुम जैसे शरीफ कहलाते।।
इश्क करके तुम्हारा कुछ ना गया है,
गर जाता तो तुम भी गरीब बन जाते।।
मैनें मोहब्बत में तुम्हें खुदा माना था,
पर तुम मेरे कभी हबीब ना बन पाए।।
गर कर लेते हमारा अकीदा थोडा सा,
तो हम भी आज तेरे करीब आ जाते।।
मिल जाती हमको भी इश्के मंजिल,
गर सफ़र में तुम भी शरीक हो जाते।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ