काश मैं भी होती पत्थर की मूर्त
काश मैं भी होती पत्थर की मूर्त
सम्मान मुझे भी दिया जाता
मुझ अबला नारी,लड़की की
इज़्ज़त का यूं मूर्त के आगे
ना तार तार किया जाता
मैं भी होती पत्थर को मूर्त
मुझे भगवान कहा जाता
चार दीवारी के कमरे में
मुझे स्थान दिया जाता
पूजते मुझे भी देवी समझकर
सबकी आस्था का प्रतीक बन जाती
काश होती पत्थर की मूर्त
मुझे सम्मान दिया जाता
मैं होती पत्थर की मूर्त
सुर्खिया अख़बार की नही बन पाती
रोज़ सरे आम गली मौहल्ले में
इज़्ज़त नही उतारी जाती
काश मैं होती पत्थर की मूर्त
माँ मैं भी कहलाती
काश मैं भी होती पत्थर की मूर्त
मूक दर्शक मैं भी बन जाती
पत्थर की मूर्ती के आगे
मेरी इज़्ज़त यूं ना उतारी जाती
गली के हर कोनों में मंदिर बनता
आरती मेरी उतारी जाती ।
बन गयी हूँ ज़िंदा लाश
काश मैं भी पत्थर को मूर्त बन पाती