काश, मैं इक छोटी सी….
काश, मैं इक छोटी सी….
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काश,मैं इक छोटी सी कविता लिख पाता !
पढ़कर पाठक गण जिससे प्रसन्न हो जाते !
दु:ख , क्लेश सभी का कुछ तो बाॅंट पाता !
कुछ पल साथियों का हमदर्द तो बन पाता !!
काश,सबके मन की भावनाऍं जान पाता !
और सबकी अपेक्षाओं पे खड़े उतर पाता !
कुछ ख़ास तथ्यों से लबालब जो कर देता !
जिज्ञासाऍं सबकी पल में ही प्रबल कर देता !!
काश, मैं इक छोटी सी……
काश, अपने ख्यालों में इतना डूब जाता !
जो , खुद की भी कोई परवाह ना करता !
जिसमें गोते लगाकर सारे मोती ले आता !
जिसे शब्दों के साथ गूॅंथकर पहना जाता !!
और सबके ही मन-मस्तिष्क पे छा जाता !!
काश, किसी पर्यटन में सखा संग हो लेता !
मौज – मस्ती करता , बेवजह ही इठलाता !
झूमता, गाता, कुछ ऐसी कहानियाॅं बनाता !
शब्दों में सजाकर कविता की विधा दे देता !!
काश, मैं इक छोटी सी……
ये ज़िंदगी तो कुछ पल की ही है झूम लें ज़रा!
ग़मों को भुलाकर , ख़ुशियों को चूम लें ज़रा !
आसमाॅं में उड़ने का सपना हम बुन लें ज़रा !
नूपुर की मधुर झनकार को हम सुन लें ज़रा !!
चन्द लम्हे जीवन में बचे हैं,इन लम्हों को जी लें !
ख़्वाबों की गहराइयों में जाके पलकें झपक लें !
दोस्त,दोस्त के काम आ जाए,ऐसी ही सबक लें !
शब्द,शब्द पे मंथन करके कविता इक लिख लें !!
काश, मैं इक छोटी सी……
__ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )