काश, जीवन का वो रहस्य….
काश, जीवन का वो रहस्य….
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क्या है मेरी मजबूरियाॅं…
तुम नहीं जान सकते !
मुझसे अपनी दूरियाॅं…
तुम नहीं माप सकते !!
हम किसी से कितने दूर हैं,
या उसके इतने पास हैं !
समझाऊॅं उन्हें ये कैसे ,
यह तो इक आभास है !!
हक़ीक़त कोसों दूर है !
मुसीबत से वो मजबूर है !
कोई करे तो क्या करे ,
जीवन का यही दस्तूर है !!
कौन किसका है यहाॅं ,
या कोई सबका है यहाॅं !
ये बात बस, इक राज़ है ,
न समझ सकता कोई यहाॅं !!
ये ज़िंदगी तो इक खेल है !
और खेलता सब ये खेल है !
खिलाड़ी औरों को जानते नहीं,
अरे, कैसा अजूबा यह खेल है !!
सभी किसी वक्त तो मिलते हैं !
पर, ख़त्म होता जब ये खेल है !
किसी को देख तक सकते नहीं ,
खेल का मैदान अब कोई जेल है !!
काश, आरंभ में ही सबको जान पाते !
सभी एक दूसरे के कुछ तो काम आते !
किसी की मजबूरियों में सहारा बन पाते !
पहले इस जीवन का रहस्य तो जान पाते !
काश, इस जीवन का वो रहस्य जान पाते !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : २४/०६/२०२१.
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