काश कभी ऐसा हो पाता
तुम फूल सी खुशबू फैलाती, मैं धूल सा हर कहीं उड़ता जाता;
तुम रहा करती खुली आँखों में मेरी, मैं बंद आँखों में सपने सजाता;
कच्ची धूप और मीठी हवाएं, सुबह-शाम तुम को मिल जाती;
ये दिन ये रात एक सा हो जाता, काश कभी ऐसा हो पाता !
नदियां जो कुछ हरकत बदले, लहरों का सरगम बन जाता;
कोई नदी जो राह बदल ले, झरनों का कलरव थम जाता;
बूंद-बूंद जो रिसती है धुन, उस धुन से मझधार खेवाता;
कमरे में सिर छुपाये जो बैठे हैं उनको भी ये सब दिखाता;
तुम्हारी ये पंखुरियाँ बीज और पराग जो अनायास ही खो जाते होंगे,
उन्ही को चुनकर हाथों में भरकर फिर से कोई फूल खिलाता,
थोड़ी नई धूल बनाता, काश कभी ऐसा हो पाता !