काशी नगरी और भोले की बारात
मित्रों, आज मैं आपको भोले की नगरी काशी की शिव बारात से रू-ब-रू कराती हूँ ,जिसमें शिवजी भस्मी रमाये दूल्हा बनकर निकलते हैं और पूरी काशी हर्षोल्लास से बारात की अगवानी करती है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष धार्मिक महत्त्व है। यह पावन पर्व बड़ी ही श्रद्धा और उल्लास के साथ फाल्गुन के महीने में कृष्ण चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है।महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। इस दिन शिव जी की उपासना और पूजा करने से शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था।”ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: इसी समय जीवन रूपी चन्द्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का महत्त्व है। महाशिवरात्रि का पर्व परमात्मा शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परमसुख, शान्ति एवं ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। गरुड़पुराण में इसकी गाथा है- आबू पर्वत पर निषादों का राजा सुन्दरसेनक था, जो एक दिन अपने कुत्ते के साथ शिकार खेलने गया। वह कोई पशु मार न सका और भूख-प्यास से व्याकुल वह गहन वन में तालाब के किनारे रात्रि भर जागता रहा। एक बिल्ब (बेल) के पेड़ के नीचे शिवलिंग था, अपने शरीर को आराम देने के लिए उसने अनजाने में शिवलिंग पर गिरी बिल्व पत्तियाँ नीचे उतार लीं। अपने पैरों की धूल को स्वच्छ करने के लिए उसने तालाब से जल लेकर छिड़का और ऐसा करने से जल की बूँदें शिवलिंग पर गिरीं, उसका एक तीर भी उसके हाथ से शिवलिंग पर गिरा और उसे उठाने में उसे शिवलिंग के समक्ष झुकना पड़ा। इस प्रकार उसने अनजाने में ही शिवलिंग को नहलाया, छुआ और उसकी पूजा की और रात्रि भर जागता रहा। दूसरे दिन वह अपने घर लौट आया और पत्नी द्वारा दिया गया भोजन किया। आगे चलकर जब वह मरा और यमदूतों ने उसे पकड़ा तो शिव के सेवकों ने उनसे युद्ध किया उसे उनसे छीन लिया। वह पाप रहित हो गया और कुत्ते के साथ शिव का सेवक बना। इस प्रकार उसने अज्ञान में ही पुण्यफल प्राप्त किया। यदि इस प्रकार कोई भी व्यक्ति ज्ञान में करे तो वह अक्षय पुण्यफल प्राप्त करता है।कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी।इसी लिए रात में शिव जी की बारात भी निकाली जाती है।भोलेनाथ की नगरी काशी शिव रंग में रंग जाती है। सोनार पुरा स्थित “तिलभांडेश्वर” मंदिर से शिवजी की बारात उठती है जिसमें भूत ,प्रेत, असुर, दानव, औघड़ , साधु-सन्यासी यहाँ तक कि देवी -देवता भी बाराती के रूप में शामिल होते हैं।इस अदभुत बारात में मोह-माया से विरक्त देह पर भस्मी रमाये ,जटाधारी नागा बाबा (निर्वस्त्र साधु) निकलते हैं।भीड़ का उत्साह देखते बनता है।शिवजी पर बरसते फूल और जय-जयकार काशी नगरी की धार्मिक स्थली को देवलोक बना देते हैं। इस मनोरम छटा का हर भक्त वर्ष भर भक्तिभाव से इंतज़ार करता है। भाँग-बूटी और ठंडई में डूबी भक्तों की भक्ति साक्षात् देवमयी हो जाती है।गंगा घाट पर इसका आनंद , जय-जय शिव शंकर का ध्वनि नाद अविस्मरणीय है। घाट पर होली के रंग आज सेही वातावरण में मनोहारी मादकता भर देते हैं। इस दिन देवता स्वयं काशी में आकर महाशिवरात्रि का आनंद लेते हुए शिव बारात में शामिल होते हैं।मैं भी हर साल भोले का बारात में स्वागत करने जाती हूँ और प्रभु का दर्शन पाकर स्वयं को प्रभुमय पाती हूँ। हमारे घर में भी भाँग व ठंडई भोग के रूप में ग्रहण की जाती है जिसके सेवन के बाद मैं गिरते-पड़ते तीनों लोकों की सैर कर लेती हूँ।आज भी याद है शादी के बाद की पहली शिवरात्रि…राई के बराबर भाँग खाने पर आज की सोई कल उठी थी। ज़मीन पर पैर नहीं टिका पा रही थी। सिर पकड़ कर झूम रही थी। कितना अद्भुत अहसास था वो। वाराणसी में यह बारात दशाश्वमेध स्थित बाबा विश्वनाथ के मंदिर सहित विभिन्न इलाकों से होकर निकलती हैं और वापस तिलभंडेश्वर मंदिर आकर खत्म होती है। भक्तों की भीड़ बारातियों का स्वागत करती है।ऐसा लगता है कि देव नगरी काशी दूल्हा बने शिव के स्वागत में हर्षोल्लास सहित उमड़ पड़ी है।ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान मानवजाति के काफी निकट आ जाते हैं। मध्यरात्रि के समय ईश्वर मनुष्य के सबसे ज्यादा निकट होते हैं। यही कारण है कि लोग शिवरात्रि के दिन रातभर जागरण करते हैं। डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”