#काव्य_कटाक्ष
#काव्य_कटाक्ष
■ सीधी न समझने वालों के लिए उल्टी बात…
【प्रणय प्रभात】
◆ षड्यंत्रों की फ़सल उगाओ,
घूम-घूम कर आग लगाओ।
चिर संकट के तुम संवाहक,
जितनी चाहो गदर मचाओ।
तुम जामाता हो सरकारी।।
◆ विष का वमन करो प्याली में,
खा कर छेद करो थाली में।
अपनी मर्ज़ी के हो मालिक,
गिरो गटर में या नाली में।
मुल्क़ तुम्हारा है आभारी।।
◆ काई तुम हो कीच तुम्ही हो,
उच्च कोटि के नीच तुम्ही हो।
सदियों बाद सुधर ना पाए,
कालनेमि, मारीच तुम्ही हो।
विध्वंसक, विकृत, व्यभिचारी।।
◆ कपट, कुटिलता सब बस में है,
द्रोह तुम्हारी नस-नस में है।
“गुल्ले” साबित हुए सदा ही,
मगर वजूद सदा रस में है।
पोर-पोर में है मक़्क़ारी।।
◆ हर तारक के तुम मारक हो,
मानवता के संहारक हो।
विस्तारक हो हर विवाद के,
सकल जगत के संक्रामक हो।
तुम चलती-फिरती बीमारी।।
◆ निपट गँवार महा ख़ैराती,
बारह मास बने बाराती।
बस कृतघ्नता पर गर्वित हो,
निज कृत्यों पर लाज न आती।
नंगे परमेश्वर पर भारी।।
◆ रग़-रग़ में विष एक बसा है,
निज कपाल पर क़फ़न कसा है।
बंद पिटारी के भुजंग तुम,
जिसने पाला उसे डसा है।
तुम हो एक कृपाण दुधारी।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)