काव्य
एक रचना बच्चे के लिए जिसकी माँ देहव्यापार के दलदल में फँसी है वह जब देखता है कि हर रोज नया आदमी आता है उसकी माँ से मिलने मगर माँ कभी उसको परिचय नही करवाती पिता, चाचा या मामा कहकर और तो और माँ उसको अपने कमरे से दूर सुलाती है कभी अपने कमरे में नहीं, वही सवाल तो बच्चा करेगा अपने आप से !
कौन कौन मिलने आता है किससे उसका नाता है,
नन्हें से अबोध बालक के मन में यह सब आता है,
रोज रात माँ उसको कमरे के बाहर ही सुलाती है,
आने वाला रोज नया पर एक सी धौंस जताता है ।
अब तक तो उसकी माँ ने परिचय नहीं कराया है,
पर हर आने वाला खुद को उसका बाप बताता है ।।
अमित मौर्य
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