काव्य सरिता….
पावन मृदु अहसास से बनती सदा स्वादिष्ट कविता,
कोमल हृदय निकल के बहती निर्मल काव्य सरिता।
प्रथम् संकेंद्रित मन से करती माँ वाणी को प्रणाम,
श्री गणेश तब करती कलम लिख स्याही से नाम।
शब्द सोरठा छप्पय छंद की भाँति भाँति तरकार,
शहद सवैया नवरस मिष्ठी मिश्री घन पेड़े अलंकार।
गति यति गण तुक और मात्रा दोहा रोला सब छंद,
उर सौंदर्य आंच पके भरते मन मानव भाव आनंद।
हो सरस ये काव्य विधि करती मैं सदा प्रयास,
प्रथम् शारदे भोग लगा कर फिर लेती हूँ ग्रास।
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)