काल-व्यूह से लड़ना होगा !
काल व्यूह से लड़ना होगा !
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यह पुण्य भूमि है ऋषियों की,
जहां अभूतपूर्व वीरता त्याग की धार
खंडित भारत आज खंड खंड ,
दे रही चुनौती कर सहर्ष स्वीकार !
दग्ध ज्वाल विकराल फैला,
कर विस्तीर्ण विराट दिगंत पुकार,
पुण्य भूमि से नीले वितान तक
शत्रु दल में हो हा-हाकार !
सभ्यता-संस्कृति प्रशस्त बिन्दु खातिर ,
हर क्षण धधकती हो असिधार ,
दृढ़ बलवती स्नायु भुजदंड अभय हो ,
हाथों में डोले तलवार !
भूतल से नीलगगन तक दग्ध चीख-पुकार मचा दे ,
काल का आह्वान कर विराट चित्कार फैला दे ,
शत्रु का मस्तक विदीर्ण कर अविस्मरणीय, कराल काल दिखला दे ;
पुण्यभूमि पर वीरता का वह प्राचीन यश-गौरव फैला दे !
उत्तर में परिवेष्टित हिमालय ,
दक्षिण पूर्व पश्चिम महासागर,
अखंड भारत का कर सीमांकन
विकराल ज्वाल उठाकर !
एक बार पुनः धरती की करुण पुकार हटा दे,
संतप्त पुण्य भूमि की आहत स्वर मिटा दे !
मातृभूमि खातिर समस्त विश्वपटल पर,
‘ काल ‘ व्यूह से लड़ना होगा ;
कर मृत्यु का आलिंगन , अग्निस्फुलिंङ्ग जगा ;
सर्वस्व न्योछावर करना होगा !
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’
पौष शुक्ल द्वितीया तदुपरांत तृतीया
जय भवानी जय श्री राम