*काले *
तन के काले मन के काले ।
एंडी से चोटी तक काले।।
फिर भी कहते ‘पुरषोत्तम,।
कहो नीच हो,याकि उत्तम ।
हंस नहीं बन सकते अप्रिये,
चाहे चोंच अपनी मांज ले ।1।
अथाह हो जन्म से फिर
तुम क्या उसकी थाह लोगे।
बसीभूत बन चतुरता मय
क्या ? उसकी वाह लोगे ।
प्रस्फुटित न होगी मृदुता,
चाहे स्वर कितने ही भांज ले।2।
वर्षों से सिंती मैल को
नाक तेरी सूंघती है ।
देख ना ले धीर कोई
आँख तेरी ऊंघती है।
वरदान है कि तू पियेगा
जूठे घूंट सुबह शाम ले ।।3।।
विष्ठा सैकड़ों दिन से सड़ी
तू मुंह उसमें मारता है।
घिस घिस के फिर फिर
तू चोंच अपनी सँवारता है।
खा इसे मोती ना मिलेंगे
चाहे जीभ लम्बी रांझ ले।।4।।
लगा ले शत शत डुबकियां
पर पाप क्या तेरे मिटेंगे ।
बैठ उतट जलदान कर ले
पर शांप क्या तेरे मिटेंगे ।
श्याम तन ना स्वेत होगा
चाहे तू सफेदी आंझ ले ।।5।।