काले अंग्रेज़
डैड, मैं छह महीने बाद हिन्दुस्तान जाऊंगा। इसलिए अभी से तैयारियां कर रहा हूँ।” अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के हैरी उर्फ़ ‘हरीश’ ने अपने पिता जैकी उर्फ़ ‘जयकिशन’ से कहा।
“कैसी तैयारी, हैरी पुत्तर?” जैकी ने जम्हाई लेते हुए पूछा।
“मैंने ठीक से हिंदी सीखने के लिए यहाँ के एक हिंदी संस्थान में एडमिशन लेना है, ताकि मुझे इण्डिया में कोई दिक्कत न हो और मैं आसानी से वहां के लोगों के बीच तालमेल बैठा सकूँ।” हैरी ने उत्त्साहपूर्वक कहा, “ये रहा हिंदी संस्थान का फ़ार्म।”
“ओह माय डियर हैरी पुत्तर। इण्डिया जाने के लिए हिंदी सीखने की क्या ज़रूरत है। वहां सारा काम अंग्रेजी में चल जाता है।” इण्डिया यानि काले अंग्रेज़ों का देश।” जैकी ने अपने बालों पर हाथ फेरते हुए कहा, “ये संस्थान का फ़ार्म फाड़कर फैंक दो। बेकार में पैंसा और वक़्त बर्बाद करोगे। आज हिंदी की वैल्यू हिन्दुस्तान में खुद न के बराबर है।”
“क्या आप चुटकला सुना रहे हैं?”
“चुटकला नहीं माय डियर, ये हकीक़त है। आय एम वेरी सीरियस …” जैकी ने अत्यंत गंभीर होते हुए कहा, “लार्ड मैकाले ने भारत में अंग्रेज़ी शिक्षा की नींव डालते हुए कहा था –“मैं आने वाले वक़्त में भारतीयों की ऐसी नस्लें तैयार करूँगा, जो तन से तो भारतीय होंगी लेकिन मन से अँगरेज़ … ब्लाडी इंडियन्स डॉग, काले अँगरेज़।”
और बहस में न पड़ते हुए हैरी ने हिन्दी संसथान का फ़ार्म डस्टबीन में डाल दिया।