कालेज का प्यार
कालेज के दिनो का प्यार
आज पहलू मे आ बैठा था
दिल मे बरसो से छुपे अरमान
आज फिर जुबान पर आ बैठे थे ।
पहले से ज्यादा निखरा था रूप
आंखों मे काजल अनूठा था
बैचेन थी दिल की हर धड़कन
प्यार का आलम अनोखा था ।
मौका दिया था मुकद्दर ने दोबारा
पाने को उसे जो बरसो से रूठा था
आखों से आंखें मिली तो
अविरल बरसातों का झरना फूटा था ।
खामोश तो वो भी थे इतने सालों से
बातें बताने लगी न वो और न मै झूठा था
प्यार दबाए हम दिल की गहराइयों मे
तन्हाईयों की तलहटी मे जा बैठे थे ।।
राज विग