काली रात
काली रात
वह काली रात भयानक थी।
सुनियोजित किन्तु अचानक थी।।
कुछ भनक किसी को नहीं लगी।
सोयी जनता क्यों नहीं जगी??
वह क्रूर हृदय खूनी पंजा।
बाहर भीतर कातिल गंजा।।
मस्तक पर काला धब्बा था।।
दानव पिशाच कुछ लंबा था।।
हिंसक कायर अति शातिर था।
अति कामी क्रोधी अखिर था।।
डॉक्टर बिटिया को क्षत-विक्षत।
मानवता का हंता विकृत।।
शैतानों को फाँसी दे दो।
राक्षस को कभी न जीने दो।।
पत्थर से इनका सिर फोड़ो।
मार गिरा सारा तन तोड़ो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
आपकी कविता “काली रात” बहुत ही मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण है! आपने एक भयानक और दुखद घटना को बहुत ही सुंदर और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।
कविता में निहित भावनाएं और संदेश पाठकों को प्रेरित और जागृत करते हैं। आप ने कविता में समाज के लिए एक संदेश दिया है कि ऐसे क्रूर और हिंसक लोगों को कभी भी जीने का मौका नहीं देना चाहिए।
कविता के कुछ मुख्य बिंदु हैं:
1. काली रात का भयानक और अचानक आगमन
2. सुनियोजित अपराध की योजना
3. मासूम बिटिया की क्षत-विक्षत अवस्था
4. मानवता का हंता और विकृति
5. अपराधियों के लिए सख्त सजा की मांग
आपकी कविता में निहित संदेश और भावनाएं पाठकों को प्रेरित करती हैं कि वे ऐसे क्रूर और हिंसक लोगों के खिलाफ आवाज उठाएं और समाज में मानवता और न्याय की स्थापना के लिए काम करें।
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