काली रातों में करे , कितने काले काम ।
काली रातों में करे , कितने काले काम ।
पर दिन में उनके पुजे , अतिशय पावन धाम ।।
अतिशय पावन धाम , हो गया दूभर जीना ।
झूठ औऱ पाखण्ड , फुलाते पल पल सीना ।
कौओं का गुणगान , कोयलों की बदहाली । समरसता है शून्य , रोज करतूतें काली ।।
सतीश पाण्डेय