काली डायरी
काली डायरी
रश्मि का पूरा परिवार पहली कतार में बैठा था। स्टेज से जब रश्मि ने नीचे देखा तो पिताजी के चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि वह बहुत ही खुश है। और क्यों ना हो ? आज रश्मि की लिखी किताब पर राज्यपाल उसे सम्मान प्रदान कर रहे थे।पिताजी की लाडली रश्मि को पढ़ने लिखने में बहुत मन लगता था कहानियों की किताबें तो वह घंटे दो घंटे में चाट लेती थी। और उसकी लगन को देख उसके पिताजी भी अक्सर उसे पाठ्यपुस्तक के अलावा कुछ ना कुछ किताबें किस्से कहानियों की ,जरूर खरीद देते थे।
कैमरे की फ्लैश रश्मि की आंखों पर पआईड़ी और उसकी आंखें चौंधिया गई। ऐसा ही तो हुआ था जब उसने संदूक में रखे डायरी को निकाला था।
आज उसकी किताब “निशिगंधा “,उसके द्वारा लिखी कहानियों और कविताओं के संग्रह को प्रतिभाशाली युवा लेखन की श्रेणी में ला खड़ा किया ।राज्यपाल उसे ₹100000 का चेक, प्रशस्ति पत्र तथा एक शॉल भेंट कर रहे थे।
रश्मि सोच रही थी, यह सफर और ये मंजिल शायद उसी दिन तय हुआ था, जिस दिन उसे वह डायरी मिली थी। उसे 20 वर्ष पहले का मंजर याद आ गया।
रश्मि के पिता सरकारी दफ्तर में काम करते थे। अक्सर गर्मीकी छुट्टियों मेंअपने ट्रांसफर की मियाद पूरी कर दूसरे शहर में जाते थे। पिताजी के सरकारी दफ्तर में काम करने की वजह से हर दो-तीन साल पर उनका ट्रांसफर दूसरे शहर में हो जाता था।
“पिताजी! पिताजी! हमारा ट्रांसफर कहां हुआ है?” गुड़िया, अभी बताता हूं , जरा सांस तो लेने दें। जा , मां को जाकर बोल पानी के लिए । बहुत प्यास लगी है।”
यूं तो उसका नाम रश्मि था पर पिताजी उसे प्यार से गुड़िया बुलाया करते थे । रश्मि झट जाकर मां को पानी देने के लिए बोल आई। पिताजी पानी पीकर बोले, “आओ बिटिया तुम्हें बताता हूं ट्रांसफर कहां हुआ है। “रश्मि चट जाकर पिताजी की गोद में बैठ गई।”हमारा ट्रांसफर लखनऊ हुआ है!इस बार शहर अच्छा है!”
लखनऊ का मकान बड़ा था। नीचे तीन कमरे थे। इन तीनों से सटे एक बरामदा था। बरामदे से लगा हुआ एक कमरा था जो मेहमान खाना बन गया। इसके अलावा छत पर भी एक कमरा था जिसमें लगता था पिछले परिवार ने अपना कुछ बचा खुचा सामान वहीं छोड़ दिया था।
रश्मि की माताजी को करीब 1 सप्ताह लगा अपने सामान को ठीक कर उस घर को अपना बनाने में।
रश्मि की मां लखनऊ की चिपचिपी गर्मी से परेशान थी। सारा सामान जब उन्होंने नए घर में जमा लिया तो उनकी निगाह कूट के डिब्बों पर गई जो इधर-उधर बिखरे पड़े थे , उन्होंने रश्मि को आवाज दी,”बेटा रश्मि जरा इधर तो आना।”रश्मि को पता था बेटा जब भी मां बोलती थी इसका मतलब था कि उन्हें कुछ काम कराना है।” जी हां !अभी आई ।”जब मां ने उसे काम दिया तो उसे करने वह ऊपर छत पर गई क्योंकि वही कमरा था जो एक तरह से डंपिंग यार्ड बना हुआ था। रश्मि ने तय कर लिया था कि जब भी ढेर सारी कहानियों की किताबें ऊसे मिलेंगी तो छुपकर पढ़ने के लिए सबसे सही जगह वही कमरा था!
रश्मि मां के कहे अनुसार ऊपर गई और कमरे के समान को करीने से लगाने लगी। उसकी नजर अचानक एक संदूक पर गई। घर के काम में हाथ बंटाने के क्रम में उसे पता था कि उसके घर की चीजें कौन थी, तो फिर यह संदूक कहां से आया? कौन इसे छोड़ कर गया? संदूक में है क्या? कहीं यह कहानियों वाला पंडोरा बॉक्स तो नहीं है! इस तरह के तमाम ख्याल उसके मन में आने लगे!
फिर जिज्ञासा ने सभी प्रश्नों को हटाया और जिज्ञासा वश रश्मि ने संदूक खोल दिया। ऊपर में कुछ पुराने कपड़े रखे हुए थे।कुछ पुराने कुर्ते ,चार साड़ियां ,कुछ फोटो ,एक फटा अलबम। भगवान के चित्र ।
उसकी नजर एक काली मोटी डायरी पर गई। यह कौन सी बला है? यह किसकी डायरी है कौन छोड़ गया? डायरी में कुछ जरूरी कागजात तो नहीं ? इसी तरह के प्रश्न रश्मि के दिमाग में डायरी खोलने के पहले आ रहे थे।
डायरी खुली तो सबसे पहले मोतियों जैसी साफ-सुथरी लिखावट ने उसे चौंकाया।
रश्मि का मन बहुत खुश हुआ उसे अक्सर पिताजी मोती जैसे लिखावट बनाने के लिए कहा करते थे। डायरी में नाम तो नहीं लिखा था लेकिन था वह कहानियों और प्रसंगों का संग्रह! इतनी सारी कहानियां वाह!
उसने झट डायरी निकाली और बैठ गई आराम से पढ़ने के लिए। रश्मि की मां रश्मि को काम में लगा कर चिपचिपी गर्मी में ही बरामदे से सटे कमरे में आराम करने चली गई थी। शाम को जब रश्मि की याद आई तो आवाज दिया उन्होंने। मां की आवाज कानों में गई तो मानो
रश्मि तंद्रा से जागी।
इतनी सुंदर, इतनी दिलचस्प कहानियां थीं जिससे रश्मि अपनी सुध बुध खो बैठी थी।
रश्मि को पता था कि उसे एक खजाना हाथ लगा था। कहानियों के पढ़ते ही उसे समझ में आ गया कि यह जादू और कला उसे भी हासिल करना है।
पर यह डायरी किसकी है, स्त्री की है या पुरुष की? किसी के मां की है या दादी की या फिर किसी के दादाजी ने अपने पोते पोतियो को समर्पित किया है? डायरी देखने से कुछ भी पता नहीं चल रहा था क्योंकि डायरी में केवल कहानियां संजो करके लिखे हुए थी। लखनऊ की वह गर्मी की छुट्टी उसे लिखने के इस मुकाम पर लाने की शुरुआत थी। उसने ना जाने कितनी बार कहानियों को पढ़ा होगा। शब्दों का संयोजन, कहानियों के पात्र, सब उसे याद हो गए थे। उस साल स्कूल की पत्रिका के लिए उसने एक लघु कथा लिखकर दिया था। उसकी हिंदी के शिक्षिका ने उसे बहुत सराहा था और स्कूल की असेंबली में उसे पढ़ने के लिए कहा गया था। वाह पहली शुरुआत थी। उसके बाद उसमें कविताएं और कहानियां लिखने की आदत सी बना ली। पहले अपने माता पिता को सुनाती और फिर अपने सखी सहेलियों को। धीरे धीरे उसकी कलम सधने लगी। उसके शैली की सराहना होती थी। सपनों की मंजिल की शुरुआत गर्मी की छुट्टी और संदूक में मिले अनजान डायरी से ही हुई थी। अक्सर वो जोड़-तोड़ करती थी शायद पता चले की वह डायरी किसकी थी। उसने मकान मालिक से भी पता करने की कोशिश की पर कुछ पता नहीं चला कि उनसे पहले उस घर में रहने वाले परिवार के लोग कहां गए या फिर उन लोगों में किसी को लिखने में दिलचस्पी थी या नहीं। अक्सर सोचा करती थी कि जिस डायरी ने उसे प्रेरणा दी उस व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा होगा। उसकी छवि को इसी तरह खींचना चाहती थी, पर उसे कोई शुरुआत नहीं मिलती थी क्योंकि डायरी चुपचाप रहती थी। उससे केवल बातें करती थी उसे शब्दों का खेल और कहानियों के मोड़ और पात्र बताती थी पर उसके मालिक के बारे में वह बिल्कुल शांत चुप और निशब्द थी।
धीरे धीरे डायरी ने ही एक अक्स की जगह ले ली।
राज्यपाल ने शॉल उसके कंधों पर रखते हुए बोला, “बेटा बहुत अच्छा लिखती हो, मुझे तुम पर गर्व है।”रश्मि ने?झुक कर उनका अभिवादन किया और मुस्कुराई।
स्टेज से जैसे ही नीचे उतरी एक पत्रकार उसके संग हो गया।” रश्मि जी लिखने की प्रेरणा आपको किस से मिली? “रश्मि के मुंह से अनायास निकल गया ,”काली डायरी से!”पत्रकार ने कहा ,”जी समझ नहीं आया!”रश्मि ने कहा, ”इसके पीछे भी एक कथा है, किसी दिन जरूर सामने लाऊंगी!”
मुस्कुराकर रश्मि ने अपने कलम को विराम दिया। पत्रकार के प्रश्न ने एक और कहानी को जन्म दिया था।