काली जुल्फों के घने साये
काली जुल्फों के घने साये
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काली जुल्फों के घने साये
इश्क ए जाल में फंसाये
गेसुओं की गहरी घनी छांव
राहत का सांस था दिलाये
झटकती भीगी भीगी लटें
शीतल आशियाना बनाये
नागिन सी बल खाती खाए
जब चोटी हवा में घुमाये
दिल में तूफां सा मच जाए
सुनहरी अलक जब लहराये
बाल जैसे स्वर्णिम तारें
सीने पर बिजलियाँ गिराये
कुंतल की उलझनों में सदा
सुलझा हुआ भी उलझ जाये
भीगे कच से टपके पानी
पलकों से गालों तक आए
शिरोरुह छाती से जो लगे
गोरी मन ही मन शरमाये
चिकुर झट माथे पर जो गिरे
जान सूली पर लटक जाये
मनसीरत रोम का फिरे मारा
जिसने हैं सब्जबाग दिखाये
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)