काली घनी अंधेरी रात में, चित्र ढूंढता हूं मैं।
काली घनी अंधेरी रात में, चित्र ढूंढता हूं मैं।
निरा पागल हूं, सियासत में चरित्र ढूंढता हूं मैं।।
जय हिंद
काली घनी अंधेरी रात में, चित्र ढूंढता हूं मैं।
निरा पागल हूं, सियासत में चरित्र ढूंढता हूं मैं।।
जय हिंद