काली कालिख पोत विदाई
चौपाई
देख बिदाई की बेला को।
रोते परिजन किया भला को।।
कुछ कहते यह भला हुआ है ।
संग बुरा जो टला दुआ है ।
काम धाम का जो सहयोगी ।
जान बिदाई बनता रोगी।।
पता नहीं अब कौन जुड़ेगा।
कैसा वह व्यवहार करेगा ।।
कुछ आलोचक करें बुराई ।
इसने किसकी करी भलाई ।।
व्यर्थ विदाई का सब खर्चा ।
आपस में करते हैं चर्चा ।।
कुछ तटस्थ रहते हैं भाई ।
परंपरा की करें निभाई।।
याद छोड़ कर सभी पुरानी ।
स्वागत छेड़ें नई कहानी ।।
जो आया है जाना तय है ।
करों बिदाई फिर क्या भय है ।।
जिसने नहीं किया उपकारा।
जाना उसका लगता प्यारा।।
जिसके काम रहें जन हित में ।
वही हृदय दुख भरता मित में ।।
यह सन साल रहा दुखदाई ।
काली कालिख पोत विदाई ।।
राजेश कौरव सुमित्र