कालिया मर्दन
ज्योतिषी शंकर जी बनके
जिनके पद का स्पर्श था पाया
गौतम नारी तरी तप से प्रभु
ने अपना पद शीश लगाया
जो पद पाने ऋषि मुनि संत
अनंत के ध्यान शरीर सुखाया
मैं बड़भागी हूं कालिया जो हरि
को अपने हर शीश नचाया
हर्ष लिए हर शीश उठा कहता
इसपै पग डाल दो कान्हा
मैं अभिमान के जाल फंसा इस
जाल से आप निकाल दो कान्हा
वाणी में सिर्फ हलाहल है अब
सार सुधा से संभाल दो कान्हा
बूंद ना बाकी बचे विष की पद
चिन्ह सभी पै उछाल दो कान्हा
शीश पै शीश उठा क्षण ही क्षण
जोर लगा भरके फुफकारी
ये सिर बांकी है ये सिर बाकी है
पूरे पुनीत करो बनवारी
आप को पाने के हेतु प्रभु
जमुना जहरीली ये कीन्हीं बिचारी
जो जग को रहा नाच नचा उसे
नाच नचाए रहो फनधारी
कालिया क्या वर चाहता मांग ले
क्या वर मांगूं बचा क्या कन्हैया
शीश पड़े पद धन्य हुआ
सदा लीला में मैं भी रहूं जदुरैया
आपके नाम अनंत जुड़े
एक नाम मेरे संग बेनु बजैया
थे नंदलाल अभी तक आज से
आप कहाएंगे नाग नथैया।।
गुरु सक्सेना नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश )