काला सच
तंग सुनसान गलियों मे जो कुछ होता है उससे हम अन्जान हैं। रात का अंधेरा छाते ही रोशन हो जाती है ये गलियांँ।और शुरू हो जाता है वह सब कुछ जिसे काली दुनिया का व्यापार कहते हैं । इसमें लिप्त बड़े-बड़े धनवान ,नेता ,अभिनेता से लेकर युवा वर्ग भी शामिल रहता है। यह सब प्रशासन के अधिकारियों और पुलिस की नाक के नीचे होता है । पर उन्हें अपनी जेबे भरने से मतलब है । उन्हें इसकी फ़िक्र नहीं कि यह सब कुछ ज़राय़म पेशा है । जिसे पनपने नहीं देना चाहिए और समाज मे इस तरह की गंदगी को फैलने से रोकना होगा । सबसे आश्चर्य की बात यह है कि मीडिया जिसका कर्तव्य समाज को जागरूक करना और इस तरह के धंधों को को पर्दाफाश करना चाहिए ।अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए अपनी आंख मूंद लेते हैं ।और इस प्रकार यह अनैतिक व्यापार रसूख़दार लोगो की श़ह पर फलते फूलते रहते हैं। काले धंधों का सच यह है इनके खिलाफ आवाज उठाने पर आवाज को शांत कर दिया जाता है। इसलिए समाजसेवी तत्व इनके खिलाफ आवाज उठाने से कतराते हैं । प्रबुद्ध वर्ग भी इनके विरुद्ध आवाज उठाने पर होने वाली प्रताड़ना को सहन करने के लिए तैयार नहीं होता है। इसलिए बेखौफ ये अनैतिक व्यापारी अपना धंधा बदस्तूर जारी रखते हैं। जब तक समाज में व्याप्त इस भय को को समाप्त कर आवाज उठाने और इन्हें न पनपने देने के लिए वातावरण तैयार नहीं किया जाता । तब तक यह सामाजिक नासूर खत्म नहीं होगा। जिसके लिए दलगत राजनीति से हटकर जनसाधारण में जागृति पैदा करके। इनके विरुद्ध एकजुट होकर सामाजिक आंदोलन का रूप देना पड़ेगा । तभी यह संभव हो सकेगा ।