काला धन
गजल : काला धन
रात रात भर सपना दिखता रहता है।
काले धन में जी बस अटका रहता है।
कैसे सारे काले नोट चलाऊंगा।
चोरों का मन इसमें उलझा रहता है॥
रुखसत होते नोट पाँच सौ हजार के।
छुपे हुए धन में मन खोया रहता है॥
कैसे क्या होगा अब काले नोटों का।
यही सोचकर दिल अब सहमा रहता है॥
कुछ नेता चुप हैं कुछ खोये खोये हैं।
कुछ का मन विरोध में भटका रहता है॥
रद्दी जैसे हुए नोट जो थे प्यारे।
जिनका दुष्कर्मों से नाता रहता है॥
दिनेश कुशभुवनपुरी