काला खून
काला खून
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शाम को रामलाल अपने साहब मुखर्जी से मिलने के लिए चला तो उसका दस साल का पुत्र रमेश भी उसके साथ चल दिया ।मना करने के बावजूद वह नहीं माना ।हारकर रामलाल ने कहा -ठीक है चलो।देखो, वहाँ कोई शैतानी न करना,चुपचाप बैठना।
रमेश ने हाँ में सिर हिलाया और अपने पिता के साथ चल दिया। जब वे दोनों पिता पुत्र मुखर्जी साहब के घर पहुँचे तो रमेश भौचक्का रह गया ।वहाँ रमेश ने देखा कि मुखर्जी साहब के ड्राइंग रूम में रंगीन टीवी चल रहा था,जिसे मुखर्जी साहब गोहाटी से खरीद कर लाए थे।उस टीवी में पिक्चर चल रही थी।रमेश चुपचाप सोफे के पास बैठकर पिक्चर देखने लगा ।थोड़ी देर बाद उसने देखा कि नायक और खलनायक के बीच में मारपीट होने लगी।उस मारपीट में खलनायक को काफी चोट लग गई और उसके मुँह से खून निकल आया।
खून देखकर रमेश के आश्चर्य की सीमा नहीं रही।खून बिल्कुल खून जैसा लाल था।यह बात उसके दिमाग में घर कर गई ।वह सोचने लगा कि मेरे टीवी में तो खून का रंग काला होता है पर मुखर्जी अंकल के टीवी में तो लाल दिख रहा है।अपने घर लौटते समय उसने अपने पिता जी से कहा-बाबू जी एक बात पूछूँ?
पिता जी ने कहा-पूछो बेटा,क्या पूछना चाहते हो?
रमेश ने कहा-बाबू जी अपने टीवी में खून का रंग काला क्यों दिखता है?
रामलाल को बात को समझने में देर न लगी।उन्होंने बच्चे के मासूम चेहरे को देखते हुए जवाब दिया -बेटा,जो लोग मेहनत मजदूरी करते हैं, खून जलाते हैं उनके टीवी में खून का रंग काला ही दिखता है। जो खून चूसते हैं उनके टीवी में खून का रंग लाल दिखता है।
डाॅ. बिपिन पाण्डेय