Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Nov 2020 · 6 min read

कार्तिक मास में तुलसी की महिमा

ब्रह्मा जी कहे हैं कि कार्तिक मास में जो भक्त प्रातः काल स्नान करके पवित्र हो कोमल तुलसी दल से भगवान् दामोदर की पूजा करते हैं, वह निश्चय ही मोक्ष पाते हैं। पूर्वकाल में भक्त विष्णुदास भक्तिपूर्वक तुलसी पूजन से शीघ्र ही भगवान् के धाम को चला गया और राजा चोल उसकी तुलना में गौण हो गए। तुलसी से भगवान् की पूजा, पाप का नाश और पुण्य की वृद्धि करने वाली है। अपनी लगाई हुई तुलसी जितना ही अपने मूल का विस्तार करती है, उतने ही सहस्रयुगों तक मनुष्य ब्रह्मलोक में प्रतिष्ठित रहता है। यदि कोई तुलसी संयुत जल में स्नान करता है तो वह पापमुक्त हो आनन्द का अनुभव करता है। जिसके घर में तुलसी का पौधा विद्यमान है, उसका घर तीर्थ के समान है, वहाँ यमराज के दूत नहीं जाते। जो मनुष्य तुलसी काष्ठ संयुक्त गंध धारण करता है, क्रियामाण पाप उसके शरीर का स्पर्श नहीं करते। जहाँ तुलसी वन की छाया हो वहीं पर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिसके कान में, मुख में और मस्तक पर तुलसी का पत्ता दिखाई देता है, उसके ऊपर यमराज दृष्टि नहीं डाल सकते।
प्राचीन काल में हरिमेधा और सुमेधा नामक दो ब्राह्मण थे। वह जाते-जाते किसी दुर्गम वन में परिश्रम से व्याकुल हो गए, वहाँ उन्होंने एक स्थान पर तुलसी दल देखा। सुमेधा ने तुलसी का महान् वन देखकर उसकी परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया। यह देख हरिमेधा ने पूछा कि ‘तुमने अन्य सभी देवताओं व तीर्थ-व्रतों के रहते तुलसी वन को प्रणाम क्यों किया ?’ तो सुमेधा ने बताया कि ‘प्राचीन काल में जब दुर्वासा के शाप से इन्द्र का ऐश्वर्य छिन गया तब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मन्थन किया तो धनवंतरि रूप भगवान् श्री हरि और दिव्य औषधियाँ प्रकट हुईं। उन दिव्य औषधियों में मण्डलाकार तुलसी उत्पन्न हुई, जिसे ब्रह्मा आदि देवताओं ने श्री हरि को समर्पित किया और भगवान् ने उसे ग्रहण कर लिया। भगवान् नारायण संसार के रक्षक और तुलसी उनकी प्रियतमा है। इसलिए मैंने उन्हें प्रणाम किया है।’
सुमेधा इस प्रकार कह ही रहे थे कि सूर्य के समान अत्यंत तेजस्वी विशाल विमान उनके निकट उतरा। उन दोनों के समक्ष वहाँ एक बरगद का वृक्ष गिर पड़ा और उसमें से दो दिव्य पुरुष प्रकट हुए। उन दोनों ने हरिमेधा और सुमेधा को प्रणाम किया। दोनों ब्राह्मणों ने उनसे पूछा कि आप कौन हैं ? तब उनमें से जो बड़ा था वह बोला, मेरा नाम आस्तिक है। एक दिन मैं नन्दन वन में पर्वत पर क्रीड़ा करने गया था तो देवांगनाओं ने मेरे साथ इच्छानुसार विहार किया। उस समय उन युवतियों के हार के मोती टूटकर तपस्या करते हुए लोमश ऋषि पर गिर पड़े। यह देखकर मुनि को क्रोध आया। उन्होंने सोचा कि स्त्रियाँ तो परतंत्र होती हैं। अत: यह उनका अपराध नहीं, दुराचारी आस्तिक ही शाप के योग्य है। ऐसा सोचकर उन्होंने मुझे शापित किया – “अरे तू ब्रह्म राक्षस होकर बरगद के पेड़ पर निवास कर।” जब मैंने विनती से उन्हें प्रसन्न किया तो उन्होंने शाप से मुक्ति की विधि सुनिश्चित कर दी कि जब तू किसी ब्राह्मण के मुख से तुलसी दल की महिमा सुनेगा तो तत्काल तुझे उत्तम मोक्ष प्राप्त होगा। इस प्रकार मुक्ति का शाप पाकर मैं चिरकाल से इस वट वृक्ष पर निवास कर रहा था। आज दैववश आपके दर्शन से मेरा छुटकारा हुआ है।
तत्पश्चात् वे दोनों श्रेष्ठ ब्राह्मण परस्पर पुण्यमयी तुलसी की प्रशंसा करते हुए तीर्थ यात्रा को चल दिए। इसलिए भगवान् विष्णु को प्रसन्नता देने वाले इस कार्तिक मास में तुलसी की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
———-:::×:::———-

तुलसी विवाह की विधि व महत्व

कार्तिक शुक्ला नवमी को द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। इस तिथि को नवमी से एकादशी तक मनुष्य शास्त्रोक्त विधि से तुलसी विवाह का उत्सव करें तो उसे कन्यादान का फल होता है। पूर्वकाल में कनक की पुत्री किशोरी ने एकादशी के दिन संध्या के समय तुलसी की वैवाहिक विधि संपन्न की थी इससे वह वैधव्य दोष से मुक्त हो गई थी। अब तुलसी विवाह की विधि सुनिये-
एक तोला स्वर्ण की भगवान् विष्णु की प्रतिमा बनवाएँ या अपनी शक्ति के अनुसार आधे या चौथाई तोले की बनवाएँ अथवा यह भी न होने पर उसे अन्य धातुओं के सम्मिश्रण से ही बनवाएँ। फिर तुलसी और भगवान् विष्णु की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके स्तुति आदि के द्वारा भगवान् को निन्द्रा से जगावें। फिर पुरुष सूक्त से व घोडशोपचार से पूजा करें। पहले देशकाल स्मरण करके गणेश पूजन करे, फिर पुण्याह वाचन करके वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए बाजे आदि की ध्वनि से भगवान् विष्णु की प्रतिमा को तुलसी के निकट लाकर रख दें। प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों व अलंकारों सजाए रहें उसी समय भगवान् का आह्वान इस मंत्र से करें-

आगच्छ भगवत् देव अर्चयिष्यामि केशव।
तुभ्यं दासयामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव॥

अर्थात्-हे भगवान् केशव ! आइए देव, मैं आपकी पूजा करूँगा, आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा आप मेरे सब मनोरथों को पूर्ण करें।
इस प्रकार आह्वान के बाद तीन-तीन बार अर्ध्य, पाद्य और विष्टर का उच्चारण करके इन्हें भी भगवान् को समर्पित कर दे। तत्पश्चात् काँसे के पात्र में दही, घी और शहद रखकर उसे कांसे के ढक्कन से ढककर भगवान् को अर्पण करते हुए इस प्रकार कहें- ‘हे वासुदेव, आपको नमस्कार है। यह मधुपर्क ग्रहण कीजिए।’ तब दोनों को एक-दूसरे के समक्ष रखकर मंगल पाठ करें। इस प्रकार गोधूलि बेला में जब भगवान् सूर्य कुछ-कुछ दिखाई दे रहे हों, तब कन्यादान का संकल्प करें और भगवान् से यह प्रार्थना करें- “आदि, मध्य और अंत से रहित त्रिभुवन प्रतिपालक परमेश्वर ! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण करें। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृंदावन की भस्म में स्थित रही है तथा आदि, मध्य और अंत में शून्य है। आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने जल के घड़ों से सींचकर और अन्य सभी प्रकार की सेवाएँ करके, अपनी पुत्री की भाँति इसे पाला-पोसा है, बढ़ाया है और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभो ! कृपा करके इसे ग्रहण करें।”
इस प्रकार तुलसी का दान करके फिर उन दोनों (तुलसी और विष्णु) की पूजा करें। अगले दिन प्रातः काल में पुनः पूजा करें। अग्नि की स्थापना करके उसमें द्वादशाक्षर मंत्र से खीर, घी, मधु और तिल मिश्रित द्रव्य की 108 आहुति दें। आप चाहें तो आचार्य से होम की शेष पूजा करवा सकते हैं। तब भगवान् से प्रार्थना करके कहें- “प्रभो ! आपकी प्रसन्नता के लिए मैंने यह व्रत किया, इसमें जो कमी रह गई हो, वह आपके प्रसाद से पूर्णताः को प्राप्त हो जाए। अब आप तुलसी के साथ बैकुण्ठ धाम में पधारें। आप मेरे द्वारा की गई पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे कृतार्थ करें।”
इस प्रकार तुलसी विवाह का परायण करके भोजन करें, और भोजन के बाद तुलसी के स्वत: गिरे हुए पत्तों को खाऐं, यह प्रसाद सब पापों से मुक्त होकर भगवान् के धाम को प्राप्त होता है। भोजन में आँवला और बेर का फल खाने से उच्छिष्ट-दोष मिट जाता है।
———-:::×:::———-

तुलसी दल चयन

स्कन्द पुराण का वचन है कि जो हाथ पूजार्थ तुलसी चुनते हैं, वे धन्य हैं-

तुलसी ये विचिन्वन्ति धन्यास्ते करपल्लवाः।

तुलसी का एक-एक पत्ता न तोड़कर पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिए। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मंजरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना जाता है। निम्नलिखित मंत्र पढ़कर पूज्यभाव से पौधे को हिलाए बिना तुलसी के अग्रभाग को तोड़े। इससे पूजा का फल लाख गुना बढ़ जाता है।
———-:::×:::———-

तुलसी दल तोड़ने का मंत्र

तुलस्यमृतजन्मासि सदा त्वं केशवप्रिया।
चिनोमी केशवस्यार्थे वरदा भव शोभने॥
त्वदङ्गसम्भवैः पत्रैः पूजयामि यथा हरिम्।
तथा कुरु पवित्राङ्गि! कलौ मलविनाशिनि॥
———-:::×:::———-

तुलसी दल चयन में निषेध समय

वैधृति और व्यतीपात-इन दो योगों में, मंगल, शुक्र और रवि, इन तीन वारों में, द्वादशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा, इन तीन तिथियों में, संक्रान्ति और जननाशौच तथा मरणाशौच में तुलसीदल तोड़ना मना है। संक्रान्ति, अमावस्या, द्वादशी, रात्रि और दोनों संध्यायों में भी तुलसीदल न तोड़ें, किंतु तुलसी के बिना भगवान् पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती, अत: निषेध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पत्ती से पूजा करें (पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसीदल से भी भगवान् की पूजा की जा सकती है)। शालिग्राम की पूजा के लिए वर्जित तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है। बिना स्नान के और जूता पहनकर भी तुलसी न तोड़ें।
———-:::×:::———-

“जय जय तुलसी माता”
*******************************************

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 458 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मैं भी आज किसी से प्यार में हूँ
मैं भी आज किसी से प्यार में हूँ
VINOD CHAUHAN
नाही काहो का शोक
नाही काहो का शोक
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—1.
रमेशराज की विरोधरस की मुक्तछंद कविताएँ—1.
कवि रमेशराज
बात जुबां से अब कौन निकाले
बात जुबां से अब कौन निकाले
Sandeep Pande
23/72.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/72.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नज़राना
नज़राना
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
"अपेक्षाएँ"
Dr. Kishan tandon kranti
साँवलें रंग में सादगी समेटे,
साँवलें रंग में सादगी समेटे,
ओसमणी साहू 'ओश'
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
किसी ज्योति ने मुझको यूं जीवन दिया
gurudeenverma198
कलरव में कोलाहल क्यों है?
कलरव में कोलाहल क्यों है?
Suryakant Dwivedi
वर्तमान में जो जिये,
वर्तमान में जो जिये,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
आशा की किरण
आशा की किरण
Neeraj Agarwal
#कटाक्ष
#कटाक्ष
*Author प्रणय प्रभात*
जल बचाकर
जल बचाकर
surenderpal vaidya
मोहता है सबका मन
मोहता है सबका मन
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
कविता जो जीने का मर्म बताये
कविता जो जीने का मर्म बताये
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चिंतन
चिंतन
ओंकार मिश्र
संवेदनशील होना किसी भी व्यक्ति के जीवन का महान गुण है।
संवेदनशील होना किसी भी व्यक्ति के जीवन का महान गुण है।
Mohan Pandey
सत्य की खोज
सत्य की खोज
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
राजनीति अब धुत्त पड़ी है (नवगीत)
राजनीति अब धुत्त पड़ी है (नवगीत)
Rakmish Sultanpuri
हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,
हर खिलते हुए फूल की कलियां मरोड़ देता है ,
कवि दीपक बवेजा
गरम समोसा खा रहा , पूरा हिंदुस्तान(कुंडलिया)
गरम समोसा खा रहा , पूरा हिंदुस्तान(कुंडलिया)
Ravi Prakash
मेरे अल्फ़ाज़ मायने रखते
मेरे अल्फ़ाज़ मायने रखते
Dr fauzia Naseem shad
अतिथि हूं......
अतिथि हूं......
Ravi Ghayal
मोहे हिंदी भाये
मोहे हिंदी भाये
Satish Srijan
"ओट पर्दे की"
Ekta chitrangini
💐प्रेम कौतुक-468💐
💐प्रेम कौतुक-468💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
Happy new year 2024
Happy new year 2024
Ranjeet kumar patre
मुस्किले, तकलीफे, परेशानियां कुछ और थी
मुस्किले, तकलीफे, परेशानियां कुछ और थी
Kumar lalit
औकात
औकात
Dr.Priya Soni Khare
Loading...