कारण बताओ नोटिस
कारण बताओ नोटिस
आज कार्यालय में अजीबो गरीब शांति थी| सभी अधिकारी/कर्मचारी सदमे में थे| जबकि यह कार्यालय तो हंसी-ठ्ठठों के ठहाकों के लिए विख्यात था| संदिग्ध खामोशी के बारे में, डाक देने आए डाकबाबू विजेन्द्र ने प्रदीप बाबू से पूछ लिया| विजेन्द्र का डाक देने के बहाने, इस कार्यालय में आना-जाना रहता है| प्रदीप उसका अच्छा मित्र भी है|
प्रदीप बाबू ने उसे बताया कि कार्यालय में हर रोज घड़ी, ज्यों ही पांच बजने का संकेत करती है| तभी सब कर्मचारी/अधिकारी घर जाने के लिए, तैयार हो कर, अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज करने के उद्देश्य से, बायोमैट्रिक मशीन पर अंगूठा लगाते हैं| अपने-अपने वाहन पर सवार होकर चल पड़ते हैं| इसी प्रकार पांच दिन पहले, पांच बजते ही सभी सहकर्मी छुट्टी करके, अपने-अपने घर के लिए निकले| मेरा थोड़ा सा काम रहता था| मैं अभी भी कम्प्यूटर पर कार्य कर रहा था| कार्यालय के चपरासी सतीश ने आवाज लगाई| प्रदीप बाबू घर नहीं जाना क्या?
मैंने कहा, “अपने सभी के, वेतन के बिल बना रहा हूँ| बस पांच मिनट और रुक जाओ|”
सतीश बोला, “बिल-विल कल बना लेना| जल्दी बाहर निकल, वरना अंदर ही बंद कर जाऊंगा|”
मैंने उसकी बात को मजाक समझ कर, अनसुना कर दिया| चंद मिनट में ही, मैं अपना काम निपटा कर, कम्प्यूटर को सट-डाउन करके, ज्यों ही कार्यालय से निकलने के लिए, दरवाजे के पर्दे हटाए| दरवाजा बाहर से बंद था| यह सब देख, मैं हैरान व परेशान होकर रह गया| मैंने अपने मित्र व सहकर्मी धर्मवीर को फोन करके, सारी वस्तु-स्थिति से अवगत कराया और याचना की कि वह चपरासी के घर जाकर, उसे कहे कि मुझे अंदर से निकाले| धर्मवीर फोन सुनते ही चपरासी के घर गया|
धर्मवीर ने चपरासी से कहा,”भाई साहब कार्यालय को खोलकर, प्रदीप बाबू को बाहर निकाल दे|”
चपरासी ने बेरुखे अंदाज में कहा,”मेरे पास समय नहीं है| घर पर काम बहुत हैं|”
धर्मवीर ने विनीत भाव से बार-बार कहा, परन्तु वह टस से मस नहीं हुआ| बार-बार कहने पर, मुश्किल से इस बात पर राजी हुआ कि ये ले चाबी, उसको बाहर निकाल कर, कार्यालय बंद करके, चाबी यहीं दे जाना| धर्मवीर ने मजबूरन वैसा ही करना पड़ा, जैसा उसने कहा|
धर्मवीर ने कार्यालय खोला जब जाकर मैं बाहर निकल पाया| तब तक मेरे गांव में जाने वाली अंतिम बस छूट गई| बड़ी परेशानी में, जैसे-तैसे अपने घर पहुंचा| इसी प्रकार एक-एक करके, सभी को इसने परेशान किया| अगले दिन जैसे ही, सुबह नौ बजे कार्यालय लगा| धर्मवीर ने पूरा वृतांत सहकर्मियों को कह सुनाया| सभी कर्मचारी उसकी मनमानियों से त्रस्त थे| चपरासी की बदतमीजी दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही थी| कार्यालय के सभी कर्मचारी उक्त मामले को लेकर, पूरे आक्रोशित थे|
सब सहकर्मियों ने, उच्च अधिकारियों से चपरासी की शिकायत करने का मशविरा दिया| साथ देने का वादा भी किया| सभी सहकर्मियों की सलाह से शिकायत-पत्र टाइप करके, सभी कर्मियों के हस्ताक्षर करवाए| तदुपरांत मैं शिकायत पत्र लेकर, सभी कर्मचारियों संग बॉस के कक्ष में जा पहुंचा| गुड मॉर्निंग करके सारा मामला, बड़े साहब को कह सुनाया| सभी कर्मियों ने बड़े साहब से सख्त कार्यवाही करने का अनुरोध किया| बड़े साहब ने उचित कार्यवाही का आश्वासन देकर सब को भेज दिया|
बड़े साहब ने धर्मवीर से कहा, “चपरासी के नाम इस मामले से संबंधित “कारण बताओ नोटिस” टाइप करके लाओ|”
धर्मवीर शिघ्रातिशिघ्र “कारण बताओ नोटिस” टाइप करके लाया और आगामी कार्यवाही हेतु, बड़े साहब को दे दिया|
बड़े साहब ने सभी औपचारिकताओं के बाद “कारण बताओ नोटिस” पर हस्ताक्षर करके कॉल-बैल बजाई| हट्टा-कट्टा, रौबिला, चपरासी कम, गुंडा अधिक लग रहा था| वह बीड़ी बुझाता हुआ, बड़े साहब के कक्ष में घुसा और कहने लगा, “मुझे क्यों बुलाया है”
बड़े साहब ने कहा,”कल प्रदीप के साथ आपने ऐसा क्यों किया?”
चपरासी बोला,”छुट्टी का समय हो गया था| कहने के बावजूद भी नहीं निकला तो मैं क्या करता?”
बड़े साहब ने उसे “कारण बताओ नोटिस” थमाते हुए कहा, “पांच दिन के अंदर-अंदर इसका जवाब चाहिए|”
चपरासी नाक भौं सिकोड़ते हुए, बुदबुदाता हुआ बोला, “जवाब तो हर हाल में दूंगा और ऐसा दूंगा, उम्रभर याद रहेगा| जवाब नहीं दिया तो मैं भी राजपूत का जाम नहीं|”
एक-एक करके पांच दिन गुजर गए| पांचवे दिन सुबह-सुबह हर रोज की तरह सभी कर्मचारी/अधिकारी कार्यालय पहुंचे| बायोमैट्रिक मशीन पर सबने अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज कराई| उसके बाद सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हो गए| बड़े साहब ने चपरासी को बुलाया| वह बिना अभिवादन किए, चहकता-चहकता अपने ही अंदाज में आया|
बड़े साहब से बोला, “बोलिए क्या चाहिए?”
बड़े साहब ने कहा,”आज पांच दिन हो गए| “कारण बताओ नोटिस” का जवाब नहीं दिया?”
चपरासी बोला,”जवाब जरूर दूंगा, जवाब साथ ही लेकर आया हूँ| लीजिए जवाब|”
पेंट की पिछली जेब से पर्श निकाला| जिसमें से डेबिट व क्रेडिट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस व दो हजार व पांच सौ के नोट मुंह बाए बाहर झांक रहे थे| पर्श से कम्प्यूटराइज टाइप किया हुआ, कागज निकाल कर बड़े साहब को थमाया|
थमाते हुए बोला, ” ये ले “कारण बताओ नोटिस” का जवाब|”
बड़े साहब ने ज्यों ही कागज खोला, पढ़कर पसीने से तर ब तर हो गए| चेहरा पीला पड़ गया| यह था बड़े साहब का ट्रांसफर अॉर्डर| बड़े साहब ने जेब से रुमाल निकाला, पसीना पौंछा और अपना सामान समेटना शुरु कर दिया| अन्य भी सभी कर्मचारी अज्ञात भय से सदमे में मूकदर्शक बने खड़े थे| चपरासी विजयी मुद्रा में था|
-विनोद सिल्ला©