कायल हुआ हूँ
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” कायल हुआ हूँ ”
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तेरे हुस्न का , ‘कायल’ हुआ हूँ ,
नजर से तेरी ,’घायल’ हुआ हूँ |
छनकता हूँ ! रात-दिन खुशियों से ,
तेरे पैर की ‘पायल’ हुआ हूँ ||
मदहोश करती है खुशबू सदा ,
तेरी महक का ‘साया’ हुआ हूँ |
अलग-अलग जिस्म थे ! कभी जो हम ,
अब तुमसे एक ‘काया’ हुआ हूँ ||
खींचती हैं ! तेरी आँखें मुझे ,
जिसका मैं ! सदा ‘अंजन ‘ हुआ हूँ |
निहारता रहूँ ! एकटक तुम्हें ,
मैं वो पखेरू ‘खंजन’ हुआ हूँ ||
भरा है प्रीत-जल शीतल जिसमें ,
तपस धोरों में , ‘छागल’ हुआ हूँ |
लोग कहते हैं , इश्क रहा नहीं !
तेरे इश्क में ‘पागल’ हुआ हूँ ||
वक्त का एहसास नहीं है कुछ ,
रूबरू आज और कल हुआ हूँ |
ललचाती हैं नजरें जो मेरी ,
मैं स्नेह का मीठा ‘फल’ हुआ हूँ ||
भीगती हो जिस सावन में सखी ,
उसी सावन का, ‘बादल’ हुआ हूँ |
मुस्कुराती हुई इन आँखों का ,
“दीप” कजरारा-काजल हुआ हूँ ||
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(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)
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