कायर मरते पीठ दिखाकर [ लम्बी तेवरी-तेवर चालीसा ] -रमेशराज
‘मीरा’ जैसा धर्म निभाकर
तीखे विष का प्याला पाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 1
बन प्रहलाद देख ले प्यारे
अग्नि-कुण्ड के बीच नहाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 2
अमृत रख औरों की खातिर
विष पी नीलकंठ कहलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 3
इसकी एक मिसाल कबीरा
नयी रौशनी को फैलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 4
भगत’, ‘राज’, ‘सुखदेव’ सरीखी
जल्लादों से फाँसी पाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 5
कायर मरते पीठ दिखाकर
वीर वक्ष पर गोली खाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 6
जिसमें बैठे हों कुछ बच्चे
वही डूबती नाव बचाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 7
भस्मासुर बनने से अच्छा
अपने को सुकरात बनाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 8
कठिन कार्य था हमने माना
पर्वत से गंगाजी लाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 9
पुत्र-वियोग भले झेला हो
दशरथ जैसा वचन निभाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 10
पाँच-पाँच पति, फिर भी अबला!
उस द्रौपदि का चीर बढ़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 11
गुरु सम्मुख बन एकलव्य-सा
और अँगूठा विहँस कटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 12
मरते काल बाँधने वाले
राम-सरीखे तीर चलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 13
‘अपने डर से बाहर निकलो’
कायर लोगों को समझाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 14
जिन्हें गुलामी ही प्यारी है
उनके भीतर आग बसाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 15
तन की नहीं वतन की खातिर
अपने को ‘आजाद’ बनाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 16
बनना सीख संत ‘फूले’ तू
जो कन्याएँ दलित, पढ़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 17
लोग मरें कर अपनी चिन्ता
बस औरों के लिये दुआ कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 18
खल की सत्ता से टकराकर
ऐसा कोई काम नया कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 19
मोम सरीखा पिघल और जल
अंधकार में उजियारा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 20
पत्रकार ‘विद्यार्थी’ जैसा
सम्प्रदाय की आग बुझाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 21
हिम्मत हो अब्दुल हमीद-सी
पैटन टेंकों से टकराकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 22
भले तीर-भाले झेले हों
पापी की लंका को ढाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 23
इन्द्रदेव का कोप झेलते
अँगुली पर गिर्राज उठाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 24
सूखे हुए खेत जो देखे
बादल ऐसे में वर्षा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 25
झट दे डालो अग्नि-परीक्षा
सोने-सा मन खूब तपाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 26
‘तिलक’ सरीखे भाषण देकर
शब्द-शब्द को अग्नि-कथा कर, मरा न कोई, अमर हुआ 27
जैसे रानी लक्ष्मीबाई
अरि के सम्मुख खून बहाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 28
जिससे डरे लोग सदियों से
ऐसे अंधकार में जाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 29
अबला-हित ज्यों भिड़ा जटायू
खल से अपने पंख कटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 30
जीना सब कपीश-सा सीखो
सुरसा के जबड़ों में जाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 31
मन यदि ही जैसे ‘सम्पाती’
सूरज से तन को जलवा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 32
‘लिकंन-सा’ संकल्प अगर हो
जाति-भेद का रूप मिटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 33
लड़ो लड़ाई तुम ‘लेनिन-सी’
मजदूरों का हक दिलवा कर, मरा न कोई, अमर हुआ। 34
मिट जाओगे मीरजाफरो।
देश-प्रेम में प्राण लुटाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 35
मिले चुनौती लंकेशों को
अंगद जैसा पाँव अड़ाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 36
गुरु नानक-सा बनना अच्छा
धर्मों के पाखण्ड बताकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 37
जिनमें धधक रही हो ज्वाला
खल को वो तेवर दिखलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ। 38
अहंकार में एैंठ रही जो
उस गर्दन तलवार चलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ।39
कविता को तेवरी बनाकर ,
खल सम्मुख तेवर दिखलाकर, मरा न कोई, अमर हुआ।40
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+रमेशराज,15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
Mo.-9634551630