काम* मैं तुम कामिनी
मैं चाँद हूँ तुम चाँदनी।
मैं कंत हूँ तुम भामिनि।
मैं राग हूँ तुम रागिनी।
इतनी उतावली यमिनी।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
तरुवर छटा बिखेरता।
मुझ चाँद को है घेरता।
सब चाँदनी को पूछकर
है विरह को उकेरता।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
तेरे रूप का सौंदर्य या,
न ही देह की स्निग्धता।
अभिभूत कर पाया मुझे,
मुझमें तुम्हारी मुग्धता।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
रात अपलक ही रही।
कि तेरा प्यार देखेगी वही।
ऐसे न तुम शरमा प्रिये,
मैं हूँ न कोई अजनबी।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
यह मेघ करता नाद है।
उसको सभी कुछ याद है।
यह कौन सी मुलाक़ात है।
बाकी अभी भी रात है।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
आओ चलें मेरी स्वामिनी।
देखे तो देखे दामिनी।
कुटिया खड़ी वह सामने।
आओ चलें गजगामिनी।
क्योंकि
काम* मैं तुम कामिनी।
———————–*कामदेव
अरुण कुमार प्रसाद