काम तुम बेहिसाब कर दो ना,,,!
काम तुम बेहिसाब….., कर दो ना
छूके मुझको गुलाब.., कर दो ना।
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ग़र मुहब्बत है इक बुरी…, आदत
मेरी आदत खराब…., कर दो ना।
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आरज़ू इक…….., यही है बस मेरी
रुख़ जरा बेनक़ाब…., कर दो ना।
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धड़कनों के सवाल………, इतने हैं
इक मुकम्मल जवाब कर दो ना।
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रोशनी से चराग़…………., यूँ बोला
सामने आफ़ताब कर……, दो ना।
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थक चुका हूँ.. मैं उलझनों से अब
एक सुलझी किताब.. कर दो ना।
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है गुज़ारिश ऐ.. ज़िन्दगी…., तुझसे
अब तो मेरा हिसाब.. कर दो ना।
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|| पंकज शर्मा “परिंदा” ||