काम का बोझ
बोझ काम का बढ़ रहा, होती रोज थकान।
बीत गए दिन बहुत से, बिन देखें मुस्कान।।
नित नित पड़ती डांट है, चाहे कर लो काम।
काम ख़त्म होता नहीं, हो जाती है शाम।।
चिंता ऐसी काम की, मिले नहीं अब चैन।
रोज रोज के काम से, मन होता बैचेन।।
हम रहते परिवार से, कोसो कोसो दूर।
परिजन को नित याद कर, सूख रहा सब नूर।।
इतनी सी विनती करें, हम है नही मशीन।
दया दृष्टि अब कीजिए, सुख से करो न हीन।।